लेखनी कहानी - दुनियादारी
दुनियादारी
विशाखा अभी एक अल्हड़ युवती थी, जो दुनियादारी की समझ नहीं रखती थी। उस पर तो बस एक्टिंग करने का भूत सवार था। बस किसी तरह मुंबई जाना चाहती थी। खुद को बड़े पर्दे पर देखना चाहती थी।
एक छोटे से गांव में मां बाप और एक भाई के साथ, झोपड़ी में रहा करती थी, विशाखा। यौवन की दहलीज पर कदम रख चुकी थी, पर अभी भी बचपना भरा था उसमें।
उसकी मां बहुत समझाती उसे, पर वो एक कान से सुन दूसरे से निकाल देती।
मां बाप ने ऊंच नीच की फिकर करते हुए उसकी शादी पास के गांव के लड़के से करवा दी। लड़के का नाम श्याम था। गुजारे लायक कमा लेता था। घर में कहने को नाम मात्र का सामान था। मां बाप का साया बचपन में ही उठ गया था। उसने भी यही सोच कर शादी की कि घर में उसकी पत्नी आएगी तो घर घर जैसा लगने लगेगा।
विशाखा शुरू में तो बहुत रोई। श्याम के घर उसका बिलकुल मन नही लगता। वो तो बस वहां से भाग जाने की सोचती। नए नए सपने संजोती विशाखा घर का सारा काम अच्छे से करती। श्याम का भी पूरा ध्यान रखती पर पति पत्नी का संबंध अभी गहरा नही हुआ। श्याम भी विशाखा को कभी परेशान नहीं करता। उसको विशाखा के सपने के बारे में पता था। उसने तय किया कि वो विशाखा को उसका सपना पूरा करने में साथ देगा। उसको मुंबई ले कर जाएगा।
दोनों गांव छोड़ कर शहर आकर रहने लगे। श्याम को एक फैक्टरी में सुपरवाइजर की नौकरी मिल गई। उसने विशाखा को भी बाहर निकल कर जॉब करने को कहा। विशाखा ने एक ब्यूटी पार्लर में काम सीखना शुरू कर दिया।
एक साल बाद,एक दिन श्याम ने विशाखा को अपना सामान बांध लेने को कहा और दो ट्रेन की टिकटें उसके हाथ में थमा दी। टिकटें देख विशाखा को तो विश्वास ही नहीं हुआ। वे मुंबई जा रहे थे। वो शहर जहां जाने का सपना उसने बचपन से देखा था।
मुंबई सपनों की नगरी थी। पर हर किसी की किस्मत में सपने को हकीकत बनते देखना कहां लिखा होता है। अभी 2 महीने भी ना गुजरे थे कि विशाखा और श्याम के बीच परिस्थितियों को लेकर बहस होने लगी। श्याम के पास जो जमा पूंजी थी वो सब खत्म हो गई , पर अभी तक उसे कोई नौकरी नहीं मिली थी। विशाखा गांव की थी, समझ उसे थी नही, इसलिए श्याम उसे बाहर अपने साथ ही लेकर जाता।
जिस कमरे में वो रहते थे, वहां की आस पड़ोस की एक दो औरतों से विशाखा बात करने लगी। वो औरतें वहां पास की एक कपड़े की फैक्ट्री में काम किया करती थीं। विशाखा ने उनसे काम दिलाने को कहा तो उन औरतों ने उसे अगले दिन चलने को कहा।
अगली सुबह विशाखा तैयार होकर चलने तो श्याम ने पूछा कहां जा रही हो? विशाखा बोली, " तुम्हे तो कोई काम मिला नहीं, तो मैं काम ढूंढने जा रही हूं। श्याम थोड़ा गुस्सा करते हुए बोला, " अकेली जा रही हो?" तो विशाखा ने कहा, "नहीं, पड़ोस वाली भाभी के साथ जा रही हूं, वो जहां काम करती है ना, वहीं पर ही उन्होंने मुझे काम दिलाने को कहा है। काम मिल जाएगा तो परेशानी थोड़ी कम हो जाएगी।"
श्याम बोला, " विशाखा, तुम समझती नही हो, ये बहुत बड़ा शहर है। यहां के तौर तरीके कुछ अलग हैं। तुम अभी नादान हो। तुम्हें दुनियादारी की कोई समझ नही है। मेरी बात मानो, अभी कहीं मत जाओ। मैं कोशिश कर रहा हूं ना, जल्दी ही मुझे कोई नौकरी मिल जाएगी तो तुम भी अपने सपने को पूरा करने के बारे में सोचना।"
विशाखा तुनक कर बोली," श्याम, तुम पिछले 2 महीने से यही सुना रहे हो। कब मिलेगी तुम्हे नौकरी? अब तो भरपेट खाने को भी सोचना पड़ रहा है। मैं कुछ कमाने लगूंगी तो तुम्हारा थोड़ा हाथ बंट जाएगा। मैं कोई छोटी बच्ची थोड़ी ना हूं, मुझे भी दुनियादारी की समझ है। तुम चिंता मत करो।" इतना बोल वो कमरे से निकल गई।
श्याम को पता था कि विशाखा अब कुछ नहीं सुनेगी।
वो चुपचाप विशाखा का पीछा करने लगा।
विशाखा उन औरतों के साथ, संकरी गलियों से निकलती हुई फैक्ट्री पहुंची। एक औरत ने उसे अपने मालिक से मिलवाया। उस आदमी ने विशाखा को घूर कर देखा और बड़े ही अटपटे ढंग से हाथ मिलाने के बहाने उसको छूने की कोशिश की। विशाखा एक दम से पीछे हो गई। उस आदमी से शराब की बू आ रही थी।
विशाखा को हैरान परेशान देख उस औरत ने उसे समझाया, ऐसा कुछ नहीं है। चिंता मत करो। मालिक बहुत अच्छे हैं, सबका ख्याल रखते हैं। तुम कल से काम पर आ सकती हो।
श्याम ये सब देख रहा था। मन तो उसका कर रहा था कि उस आदमी को सबक सिखाए। पर कुछ सोच कर ठहर गया।
अब विशाखा सुबह 10 बजे फैक्ट्री के लिए निकलती और शाम 7 बजे घर में घुसती। श्याम उस पर नज़र रखे हुए था। उसे पता था कि विशाखा बहुत भोली है। उसे लोगों की समझ नहीं है। पर वो उसको सीधे सीधे कुछ नही कहना चाहता था।
एक शाम विशाखा को फैक्टरी में देर हो गई। बारिश और तूफान आने वाला था। श्याम उसको लेने आया था।पर वो अभी भी विशाखा के सामने नहीं था। विशाखा बाहर बस स्टॉप पर बस का इंतजार करने लगी।। तभी वो आदमी अपनी कार में आया और विशाखा को अपने साथ आने को कहा। पहले तो विशाखा मना करती रही पर मौसम का हाल देख कर कार में बैठ गई। कार वहां से निकल गई। श्याम ने तुरंत ऑटो पकड़ उस कार का पीछा करने लगा।
कार एक सुनसान रास्ते की और चलने लगी। विशाखा एकदम घबरा गई और चिल्लाने लगी, गाड़ी रोको गाड़ी रोको। उस आदमी ने गाड़ी रोकी और विशाखा के साथ जबरदस्ती करने की कोशिश करने लगा। विशाखा जोर जोर से रोने और चिल्लाने लगी। इसके पहले कि विशाखा के साथ कुछ गलत होता, श्याम ने वहां पहुंच कर उस आदमी की बहुत पिटाई की। इतनी मार खाने के बाद वो आदमी बेहोश होकर वहीं गिर गया। विशाखा दौड़ कर श्याम के गले लगी और जोर जोर से रोने लगी । श्याम ने उसे चुप करवाया और घर ले आया।
घर आकर श्याम ने विशाखा को सारी बात बताई कि कैसे वो उस पर नज़र रख रहा था? कैसे वो विशाखा का पीछा करता था। इसलिए नहीं कि उसे अपनी पत्नी पर शक था बल्कि इसलिए कि उसकी अल्हड़ सी बीवी अभी दुनिया की खूंखार नज़रों से अनजान थी।
विशाखा को अपनी गलती का अहसास हुआ। वो बोली, " श्याम, तुम सही थे। तुमने एक सच्चे जीवनसाथी का फर्ज़ निभाया है। ये मुंबई शहर हमारे लिए नही है। हम वापिस अपने शहर लौट जाएंगे और फिर से एक प्यार भरी जिंदगी बिताएंगे।"
अपनी समझबूझ से आज विशाखा और श्याम उस छोटे शहर में भी बड़ा नाम कमा चुके थे।
मौलिक रचना:-
प्रियंका वर्मा
Gunjan Kamal
27-Jul-2022 11:43 AM
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति
Reply
Saba Rahman
26-Jul-2022 11:40 PM
Osm
Reply
Khan
26-Jul-2022 10:53 PM
Nice
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